जब रिश्ते मर्यादा से नहीं, स्वार्थ से चलने लगें…\
लेखक: NeoChanakya
परिचय
समाज की गति जितनी तेज़ हुई है, उतनी ही *भावनाएं कमजोर, **रिश्ते खोखले, और *नैतिकता धुंधली होती जा रही है।
आज हम तकनीकी रूप से आगे हो गए हैं, लेकिन मानवीय दृष्टि से — कहीं पिछड़ गए हैं।
रिश्तों में प्यार की जगह स्वार्थ आ गया है। भरोसे की जगह संदेह, और सेवा की जगह उपभोग।
कभी एक महिला के साथ अत्याचार होता है, कभी किसी पुरुष के साथ —
लेकिन सवाल यह नहीं कि कौन पीड़ित है,
सवाल यह है कि समाज की चेतना आखिर मर क्यों रही है?
आखिर क्यों बढ़ रही हैं ये घटनाएं?
1. गिरता हुआ नैतिक स्तर
आज की शिक्षा में ज्ञान है, लेकिन संस्कार नहीं।
लोग सफल बनना चाहते हैं, लेकिन सच्चा नहीं।
हमने बच्चों को यह तो सिखाया कि “कैसे जीतना है”,
पर यह नहीं सिखाया कि “कब रुकना चाहिए”।
नैतिकता अब किताबों और भाषणों तक सीमित रह गई है।
2. भौतिकता की अंधी दौड़
जब जीवन का लक्ष्य सिर्फ पैसा, शोहरत, गाड़ी और सुविधा बन जाए —
तब मनुष्यता पीछे छूट जाती है।
अब रिश्ते भी इंवेस्टमेंट की तरह देखे जाते हैं —
“क्या मिलेगा, कितना मिलेगा, कब तक मिलेगा?”
और जब ‘मिलना बंद’ होता है, तो संबंध खत्म नहीं — बल्कि टूट कर बर्बाद हो जाते हैं।
3. संयुक्त परिवारों का विघटन
जहाँ पहले दादी एक नज़र में जान लेती थी कि बहू की आंखें उदास क्यों हैं,
आज वहाँ अकेले फ्लैट में,
कोई आंसू पूछने वाला नहीं होता।
संयुक्त परिवार केवल मदद नहीं करते थे,
वे मूल्य, संतुलन और सीमाएं सिखाते थे।
अब इन सीमाओं का स्थान
या तो अत्याचार ने लिया है
या अति-स्वतंत्रता ने।
4. ‘देखा-देखी’ और सोशल मीडिया संस्कृति
जब किसी का “परफेक्ट रिलेशनशिप” इंस्टाग्राम पर दिखता है,
तो लोग अपने रिश्ते को भी उसी खांचे में ढालने की कोशिश करते हैं।
वास्तविकता और आभासी जीवन के इस अंतर में
असंतोष, तुलना, लालच और अंततः विनाश जन्म लेता है।
न रिश्ते गलत हैं, न लोग — बस सोच बदल गई है
आज भी हर घर में कोई बहन अपने रिश्ते को निभाने की पूरी कोशिश करती है,
आज भी कई बेटे अपने माता-पिता की सेवा को अपना धर्म मानते हैं,
आज भी प्रेम में सच्चाई है, विवाह में पवित्रता है —
लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा
अब इन मूल्यों को कमज़ोरी समझने लगा है।
समाधान कहाँ है?
- शिक्षा में नैतिकता और रिश्तों की समझ को फिर से जगह मिले
- माता-पिता बच्चों को केवल करियर नहीं, चरित्र भी सिखाएं
- मीडिया और सोशल प्लेटफ़ॉर्म केवल नकारात्मकता नहीं, संतुलन भी दिखाएं
- सरकारें और समाज केवल महिला या पुरुष सुरक्षा नहीं, रिश्तों की गरिमा पर बात करें
निष्कर्ष: अब भी समय है
समाज को बदलने के लिए किसी क्रांति की जरूरत नहीं,
बल्कि हर घर में छोटे-छोटे बदलावों की जरूरत है।
- बात करें,
- समझें,
- सम्मान दें —
चाहे वह बेटा हो या बेटी, बहू हो या दामाद, पति हो या पत्नी।
**रिश्तों को निभाइए, उनसे जीतिए मत।
क्योंकि जो जीतता है, वो अक्सर अकेला रह जाता है।\