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इतिहास

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर जी की 300वीं जयंती पर श्रद्धांजलि

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“सक्षम, सशक्त, विवेकशील, सौम्य और धर्मपरायण भारतीय नारी शक्ति की गौरवशाली परंपरा की अद्वितीय प्रतीक — लोकमाता अहिल्याबाई होलकर।”

“अहिल्याबाई होलकर का जीवन भारतीय संस्कृति, न्याय और प्रशासन का उत्कृष्ट उदाहरण रहा है”, आज हम भारत की उस महान वीरांगना, धर्मरक्षिका, कुशल प्रशासक और लोकमाता अहिल्याबाई होलकर जी की 300वीं जयंती मना रहे हैं, जिनका जीवन सामाजिक न्याय, धर्मनिष्ठा, सेवा और लोककल्याण की अद्वितीय मिसाल है। उनका जीवनकाल न केवल मराठा साम्राज्य के इतिहास का गौरवशाली अध्याय है, बल्कि नारी सशक्तिकरण और भारतीय संस्कृति के संरक्षण का भी अनमोल उदाहरण है।

🔷 जीवन परिचय:

अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के चौंडी गाँव में हुआ था। एक सामान्य परिवार की बेटी होते हुए भी उन्होंने अपने अद्भुत चरित्र और प्रशासनिक क्षमता से इतिहास में अमर स्थान प्राप्त किया। विधवा होने के बावजूद उन्होंने शोक में डूबने के बजाय संपूर्ण मालवा राज्य की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर लिया और उसे एक समृद्ध, सुरक्षित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया।

🛡️ कुशल प्रशासक और धर्म-रक्षक:

  • उन्होंने काशी विश्वनाथ, सोमनाथ, अयोध्या, त्र्यंबकेश्वर, जैसे अनेक प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया।
  • उनके शासन में न्यायप्रियता, कर-मुक्ति, लोक सेवा, सड़क निर्माण, धर्मशालाएं, घाट और कुंओं का निर्माण बड़े स्तर पर हुआ।
  • उनका शासन लोक कल्याण पर केंद्रित था, जिसमें जनसेवा, किसानों की सहायता और धर्म की रक्षा सर्वोपरि रही।

नारी सशक्तिकरण की प्रतीक:

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का जीवन स्त्रियों के लिए एक ऐसा उदाहरण है, जो उन्हें स्वावलंबनधैर्यधर्म के प्रति निष्ठा, और सशक्त नेतृत्व का मार्ग दिखाता है। उन्होंने साबित किया कि एक नारी न केवल शासन कर सकती है, बल्कि न्याय और धर्म का एक आदर्श रूप भी बन सकती है।

उनकी प्रेरणाएँ आज भी प्रासंगिक हैं:

  • सेवा भावना: जनकल्याण के लिए अन्न, जल, शिक्षा और धर्मस्थल।
  • न्याय की निष्पक्षता: कोई भी निर्णय जाति, धर्म या वर्ग से परे।
  • संस्कृति का संरक्षण: पुरातन भारतीय तीर्थों और स्थापत्य का पुनरुद्धार।

श्रद्धांजलि:

लोकमाता अहिल्याबाई होलकर जी की 300वीं जयंती पर हम उन्हें कोटिशः नमन करते हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सेवा, धर्मनिष्ठा और न्यायप्रियता को यदि कोई जीवंत रूप में देखना हो, तो वह अहिल्याबाई जी ही हैं। “आपका जीवन सदैव राष्ट्र, संस्कृति एवं सेवा-पथ के पथिकों के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा।”

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